सूरज जैसे मै किरनो से…रोशनी फैला रहा था
आजाद पक्षी कि तरह आसमान को छू रहा था…
ख्वाबो के इन समुद्र मे मै डूब रहा था..
अपनी मंजिल कि और….राहगीर कि तरह चल रहा था…
था जनून इन आखों में….सपनो को पूरा करना था..
पर क्या पता था कि जिंदगी का तूफान सब उङा ले जाएगा
रोशनी फैलाने वाला सूरज….खुद अन्धकार का गोला बन जयेगा…
सुन्हरे पंख कट जायेंगे……मै आसमान को निहारता ही रहे जाऊंगा
ख्वाबों के समुद्र मे बवन्डर आजाएगा
राहगीर कि राह मे तुफान आ जएगा…
पर मै हारा नही…चलता गाया अनदेखी मंजिल पाने…
पर नही सोचा था कि….किस्मत का खेल बदल जयेगा..
जो सपने बुने थे….जो खवाब संजोये थे…. पूरे न हो पाएंगे..
जब आगे राह हि ना हो तो राह्गीर कहा जायेंगे ॥
This poem is dedicated to Mishra family for the sudden demise of their son..May his soul rest in peace
ReplyDeleteI am impressed sis..
ReplyDeleteur dedication is truly deserve an aprreciation....
ReplyDeleteyaar mera ko nahi pata tha ki meri frd itni acchi hindi kavita bhi likh sakti ha....good work...
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