असमंजस में थी , आसान ना थी यह डगर….
पत्थरों से टकरा के, आँधी तूफ़ान का सामना कर के
गिर के सम्भ्ल कर , सीखती हर कदम पर….
राह मे आए अनेक गतिरोधक,सोचा मैं रुक जाओं
सब कुछ छोड़ के , मैं वापस लौट जाओं….
पर मॅन से आवाज़ आई की मंज़िल नहीं है अब दूर
प्रत्यन करता चल तुझे मिलेगी ज़रूर…..
सपने जो तूने संजोए है, उन्हा पूरा करना है
पत्थरों से ठोकर खा के तुझे बहुत सीखना है,….
गिर के संभलना,संभल के उठना है
तेरा लक्ष्य तेरे सामने है तुझे उसे पूरा करना है…..
अगर अभी अंधेरा है , उजियरा भी आ जाएगा.
तू आगे बढ़ता चल मज़िल को पा जाएगा…..
सपनों में खो के जो बनाया हा तूने एक जहाँ,
कर यकीन अपने पे , तू पहुँचेगा वहाँ….
तो चल उठ अब, मंज़िल कर रही हा तेरा इंतेज़ार,
सिर उठा के चल, अब हो जा तेय्यार,…
सपने पुर होंगे, बदलेगा अब समय
राह लगेगी आसान , मंज़िल खड़ी है सामने.
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